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पुष्पराज खिलने को है

 
वन-उपवन, ताल-ताल
अद्भुत से पद्म भाल,
गौतम के शान्ति रंभ
ज्ञान-बोध के स्तम्भ,
लहरों के रथ विराज, खिलने को हैं !
निर्मल-जल, पुष्प-राज खिलने को हैं !!

मानव के कीर्तिमान
धर्म-आराधना प्रमाण
आलौकिक मुक्त-छंद
स्वर्ण-प्रभा निर्सुगंध,
शारदा नूपुर-बाज, खिलने को हैं !
निर्मल-जल, पुष्प-राज खिलने को हैं !!

स्रष्टि-पिता के पलंग
कृष्ण-नयन के प्रसंग
नारायण नाभि अंग
लक्ष्मी के चरण संग
आसन लाम्बोदराज खिलने को हैं !
निर्मल-जल, पुष्प-राज खिलने को हैं !!

-- ललित अहलूवालिया 'आतिश'
२१ जून २०१०

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