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मैं नलिनी,
जलसुता
सरोवर की गोद में पली मैं
सूरज की किरणों में नहाकर निकली मैं
अपनी नाजुक हथेलियों में, ओस के मोतियों को मैंने समेटा
अपनी मृणाल बाँहों को फ़ैला, लहरों से की है अठखेलियाँ
उषा की लालिमा पा अरविंद बन गई मैं
धवल चंद्रकिरणों का शृंगार कर पुंडरीक कहलाई मैं
मेरे उर की सुरभि से सुरभित संसार हुआ
मेरे रूप-रंग का भँवरों ने गीत गाया
गुन-गुन का गुंजार सुन लजाई मैं
मेरा जीवन
बना सुंदर उपवन
मैं कोमल कमल
कहीं आसीन हो कमल पर, धन बरसाए कमला
कहीं नीलकमलों से श्रीराम करें शक्तिपूजा
सप्तसुर वीणा के सुनाए श्वेत पद्मासना शारदा
धन्य मेरा जीवन
बना दिव्य पूजन
मैं नीरजा मैं वारिजा
मेरे अरविंद आनन ने ममता का आँचल भिगोया
मेरे कमल नयनों ने जग का मन मोहा
मेरे चरणकमलों में भक्त हृदय नत हुआ
कवियों की लेखनी ने उपमान मुझे बनाया है
वाङ्मय सारा, देखो कमलमय हुआ है
पूजन में मैं ,वन्दन में मै
चिन्तन में मैं ,लेखन में मैं
जीवनके हर स्पन्दन में मैं,
प्रतीक बनी पावनता की
सत्यता की ,सुंदरता की
हर्ष की ,पावन स्पर्श की
सबके बीच में रहकर निर्लिप्तता की
पंक में रहकर भी मैंने तब, पावन प्रेम पाया
राजनीति के ध्वज पर चढकर, अब मैंने सब कुछ गवाँया
अब कभी किसी मतवाले हाथी के, पैरों तले मैं रौंदी जाती हूँ
तो कभी किसी पंजे की ताकत से, जड़ों से उखाड़ी जाती हूँ।
मैं अंबुजा पंकजा
आज अपने वृंत से विलग हूँ
सुरभि उड़ चुकी है
पंक में धँस रही हूँ।
मेरा जीवन
बना करुण क्रंदनकमला निखुर्पा
२१ जून २०१० |