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तीन मुक्तक |
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कीचड़ में ही जन्म लिया और कीचड़ से ही
जीवन श्वास को पाया,
कीचड़ मे ही हुआ मैं विकसित और कीचड़ से ही मिली यह काया,
कीचड़ में ही पनपा पर उसकी कुरूपता और अवगुणों से रिक्त रहा -
प्रेरणा पल पल लेकर सूर्य की किरणों से श्वेत वर्ण मैंने उनसे पाया।
मेरे अस्तित्व से मिली घर को रौनक, घर के
स्वामी का मन हर्षाया,
मेरी जड़ों ने बनकर कमल ककड़ी, गृहिणी की रसोई को महकाया,
कीचड़ के संग रहा और कीचड़ के संग मेरा बचपन बीता फिर भी -
नाम मिला कमल और लक्ष्मी जी के शुभ चरणों में स्थान मैंने पाया।
जीवन उसका सुधर गया जिसने मेरे जीवन को
शिक्षा स्त्रोत बनाया,
अच्छे बुरे संग से अनभिज्ञ रह जिसने सिर्फ़ अच्छाइयों को अपनाया,
माना कि जन्म और परवरिश का एक अभिन्न स्थान है जीवन में पर -
जो निर्भर रहा आत्मविश्वास पर, प्रभु चरणों में स्थान उसी ने पाया।
हरिकृष्ण सचदेव
२१ जून २०१० |
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