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भोर हुई

 
भोर हुई लो कमल की
पाँखों पर किरणें लहराईं ,
अंबर के पट खोल दिवाकर
को अवनि के घर लाईं

ताल-तलैय्या में लहरों के
सतरंगी परिधान लगे,
लगे महावर सरिता के भी
आनन कैसे आज सजे,

मुस्कानों के पंकज - दल ले,
धरती के नयना छाईं ,
भोर हुई लो कमल की पाँखों
पर किरणें लहरा आईं

काली-कूट निशा के घेरे
सुधियों ने डाले थे फेरे,
नयनों में छलकी बरबस जो
प्रीत बावरी हँस-हँस हेरे,

मन-पनघट से आस गागरें
नेह-कामिनी भरवा लाईं,
भोर हुई लो कमल की पाँखों
पर किरणें लहरा आईं

-- गीता पंडित
२१ जून २०१०

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