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फूल लाया हूँ कमल के।
क्या करूँ‘ इनका,
पसारें आप आँचल,
छोड़ दूँ;
हो जाए जी हल्का!
किन्तु होगा क्या
कमल के फूल का?
कुछ नहीं होता
किसी की भूल का-
मेरी कि तेरी हो-
ये कमल के फूल केवल भूल हैं-
भूल से आँचल भरूँ ना
गोद में इनका सम्भाले
मैं वजन इनके मरूँ ना!
ये कमल के फूल
लेकिन मानसर के हैं,
इन्हें हूँ बीच से लाया,
न समझो तीर पर के हैं।
भूल भी यदि है
अछती भूल है!
मानसर वाले
कमल के फूल हैं।
--भवानी
प्रसाद मिश्र
२१ जून २०१० |