यह खिला कचनार देखो।
जागते ही बैठ जाते
आँख पर ऐनक चढ़ाके,
भूल जाते दीन-दुनिया
दृष्टि खबरों पर गड़ाके,
क्या धरा
गुजरे-गये में
डोलती मनुहार देखो।
यह खिला कचनार देखो।
चाय बाजू में धरी है,
गर्म है प्याली भरी है,
पत्र-तुलसी मिर्च काली
सोंठ-मिसरी सब पड़ी है।
जो नहीं
मिलता खरीदे
घुला वह भी प्यार देखो।
यह खिला कचनार देखो।
देखना, वैसे न जैसे
देखते बाजार वाले,
भावनाएँ सतयुगी
थापी हुई मन के शिवाले,
रूप देखो
या न देखो
रूप के उस पार देखो।
यह खिला कचनार देखो।
--श्यामनारायण श्रीवास्तव श्याम
४ अप्रैल २०११
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