गुलाबी लगते सुंदर रंग
महकते खिलते हैं ये फूल
बाग के आंगन के शृंगार
कोई नहीं
ये तो है कचनारपौधों की इस भारी भीड में
डौलदार और खूबसूरत एक
करे कौन इशारा यों बार बार
कोई नहीं
ये तो है कचनार
काव्यों में यों सजता है कभी
कभी झूमा था वो गीतों में
तस्वीरों में रंगी जिसकी डार
कोई नहीं
वो तो है कचनार
वादियों में हैं कैसी ये रौनक
गीत भी हवा ने गुनगुनाया
करे न करे हमें है पूरा एतबार
कोई नहीं
ये तो है कचनार
दीपिका जोशी संध्या
१६ जून २००८
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