फिर मुँडेरों पर
सजे कचनार के दिनबैंगनी से श्वेत तक
खिलती हुई मोहक अदाएँ
शाम लेकर उड़ चली
रंगीन ध्वज सी ये छटाएँ
फूल गिन गिन
मुदित भिन भिन
फिर हवाओं में
बजे कचनार के दिन
फिर मुँडेरों पर
सजे कचनार के दिन
खिड़कियाँ, खपरैल, घर, छत
डाल पत्ते आँख मीचे
आरती सी दीप्त पखुरी
उतरती है शांत नीचे
रूप झिलमिल
चाल स्वप्निल
फिर दिशाओं ने
भजे कचनार के दिन
फिर मुँडेरों पर
सजे कचनार के दिन
पूर्णिमा वर्मन
१६ जून २००८ |