कमनीय कान्त सुनम्य कोमल, यह कली कचनार की,
प्रतिमान है कमनीयता, अपितु लघु आकार की,
उपमान भी उपमेय भी, उपमा स्वयम शुभ शांत-सी,
शांत, सौम्य सुनम्यता की, कान्ति निधि नितांत-सी,
गुन्दुभी, गंभीर वर्णा, और गदराई हुई,
लग रहा, उत्कर्ष यौवन की छटा छाई हुई,
नयन-सा आकार, आकर रूप का गरिमा भरा,
मीन के आकार का ज्यों कलश हो मदिरा भरा,
कवियों की सौन्दर्य बोधक, काव्य की कामायिनी
दास काली ग्रन्थ उद्धृत, भाव की सौदामिनी।
औषधी के रूप में भी, क्लेश हरने की कला
मुखर गुणवत्ता करें हम, है कहाँ क्षमता भला।
हर्ष का उत्कर्ष मनहर, ये कली कचनार की
प्रकृति के उपहार-सी, सुख स्रोत हो संसार की।
मृदुल कीर्ति
१६ जून २००८
|