पहली बार
मेरे द्वार
रह-रह
गह-गह
कुछ ऐसा फूला कचनार
गदराई हर डार!
इतना लहका
इतना दहका
अन्तर की गहराई तक
पैठ गया कचनार!
जामुन रंग नहाया
मेरे गैरिक मन पर छाया
छ्ज्जों और मुंडेरों पर
जम कर बैठ गया कचनार!
पहली बार
मेरे द्वार
कुछ ऐसा झूमा कचनार
रोम-रोम से जैसे उमड़ा प्यार!
अनगिन इच्छाओं का संसार!
पहली बार
ऐसा अद्भुत उपहार
महेन्द्र भटनागर
१६ जून २००८
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