खिड़की पर
झूमते कचनार
राह निहारें।
रूप सँवारें
स्वर्णमयी किरणें
कचनार का।
खिलखिलायें
कचनार कलियाँ
हवा दुलारे।
सज़ी है आज
वाटिका की देहरी
कचनार से।
वादी में जब
खिले हों कचनार
झूमे अम्बर।
चाँदनी जैसे
चमचमाते हुए
ये कचनार।
मंदिर सीढ़ी
चढ़ने को आतुर
ये कचनार।
नहा रही है
कचनार गंध से
आज चाँदनी।
बातें करते
कचनार के फूल।
इक दूजे से।
मुस्काती रहीं
कचनार कलियाँ
देख मौसम।
पहली धूप
कचनार का तन
गुदगुदाए।
कोयल गाये,
महके कचनार,
झूमे बयार।
पंचतत्व-सी
दिखें पाँच पांखुरी
कचनार की।
सजे आँगन
कचनार फूलों से
देहरी झूमे।
दुपहरी में
खिले ये कचनार
शिशु समान।
शोभायमान
मंदिर की मूरत
कचनार से।
सजने लगे
ये वन उपवन
कचनार से।
सजे हैं द्वार
कचनार फूलों से
बंदनवार (बंधनवार)।
वृक्ष के तले
कचनार के फूल
बिछौना बने।
भावना कुँअर
१६ जून २००८
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