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सपनों में हरसिंगार

 

रात उनींदी पलकों में
देखे थे खिलते हरसिंगार
सपनों में मिलने आई माँ

भोर किरण ने आकर चुपके
ऐसी छुअन लगाई अंग
पोर पोर सिहराए–काँपे
पात–पात सुनहरी रंग
झुकी–झरी थी
कोमल डार
चुनकर कलियाँ लाई माँ

घर अँगना फिर हुआ सुवासित
तुलसी –चौरा धूप धुला
ठाकुर द्वारे चन्दन महके
देहरी का पट खुला–खुला
आशीषों के
शीतल झोंके
आँचल बाँध के लाई माँ

गले मिली परदेसन बिटिया
नेह की बदरी बरस गई
बाँध तोड़ नयनों की नदिया
रेत किनारे सरस गई
भरी-भरी
अँखियों में फिर से
मूरत बनी समाई माँ

शशि पाधा
१८ जून २०१२

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