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हरसिंगार फूले

 

मौसम की
शाखों पर खुशबु के झूले
आली री कानन वन हरसिंगार फूले

अर्धनिशा
विरहाकुल चकवी की बोली
चन्द्रकिरण उतरी ले निद्रा की डोली
गाँव गैल नगर द्वार, नीरव रथ पे सवार
पुरवा ले गंधहार मतवारी होली
ग्रीषम की दाहों के लू की कराहों के
विषम बाण लूले

देव पुरुष, देव वृक्ष
मूर्तिमंत जीवन हे! तुमसा है कौन दक्ष
जीवन दुःख दारुण तुम सहो विहंस तान वक्ष
महको महकाओ जग खिल खिल असंख्य लक्ष
चाहे मन आज प्रिये वेणी में गूँथ तुम्हे
प्यासे मनोरथ का दिव्य
गगन छू ले

रामशंकर वर्मा
१८ जून २०१२

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