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शीतल
छाँव बचाए रखना |
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फिर फिर
जेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।
हर यात्रा
खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती
लू से झुलसी,
गलियाँ सब गमगीन हो गईं।
थका बटोही लौट न जाये,
सुधि की जुही
खिलाये रखना।
मुरझाई
रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये
पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार
सजाये रखना।
गुलमोहर
की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा
की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप
जलाये रखना।
- राधेश्याम बंधु
१८ जून २०१२ |
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