तारों-सा
जीवन पाया है
सुबह हुई और बीत गए
जैसे झरते
झरने कल कल
रूप विरचते पल पल प्रतिपल
ऊँचाई बस रास न आई
सुंदरता
गिरकर ही पाई
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए
प्रणय
निवेदन नभ का जैसे
धरती के होठों पर बिखरे
मोती ओस कणों के पहने
बोझिल पलकें
जागें निखरें
प्राजक्ता के फूल गा रहे
गाये जो ना गीत गए
सुबह के
आँचल में सिंदूरी
श्वेत वसन काया महकी सी
रजनी अपना रूप बदल कर
प्रेमगली
फिरती बहकी सी
गए नहीं मौसम बिरहा के
वर्षा, गर्मी, शीत गए
परमेश्वर फुँकवाल
१८ जून २०१२ |