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घटनाएँ हरसिंगार की

 

गंध-हार की
भीनी-भीनी हैं घटनाएँ हरसिंगार की

उधर रूपसी धूप
नदी पर तैर रही है
इधर हवा ने
छुवन-पर्व की कथा कही है

साँस सुखी है -
कौंध जग रही कनखी के पहले दुलार की

पारिजात का बिरछ
हमारे आँगन में भी
फूल झरे हैं रात
खिले हैं कुछ मन में भी

साखी देतीं
पीतबरन तितलियाँ सुबह के खुले द्वार की

इक पिडुकी का जोड़ा रहता
हरसिंगार पर
वहीं पंछियों के देवा का
है पूजाघर

पत्ते-पत्ते ताल दे रहे
लय-धुन मीठी है बयार की

कुमार रवीन्द्र
१८ जून २०१२

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