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फूल
हरसिंगार के |
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बाँध दिए
नज़रों से फूल हरसिंगार के
तुमने कुछ बोल दिया
चर्चे हैं प्यार के
मौसम का
रंग-रूप और अधिक निखरा है
सैलानी मन मेरा आसपास बिखरा है
आज मिला कोई बिन चिट्ठी,
बिन तार के
उतरे हैं
पंछी ये झुकी हुई डाल से
रिझा गया कोई फिर नैन, नक्श, चाल से
टीले मुस्तैद खड़े जुल्फ़ को
संवार के
बलखाती
नदियों के संग आज बहना है
अनकहा रहा जो कुछ आज वही कहना है
अब तक हम दर्शक थे नदी के
कगार के
- जयकृष्ण राय तुषार
१८ जून २०१२ |
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