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एक भरम

 

चलो यार
एक भरम टूट गया
मुट्ठी से हरसिंगार छूट गया

पीतल के छल्ले पर
प्यार की निशानी
उसकी नादानी
ठगी गयी फिर शकुंतला
कोई दुष्यंत उसे लूट गया

आँखों की मछली ने
जाल कल बुने थे
इन्द्रधनु चुने थे
पानी मर गया धूप का
स्वर्णमुखी मंगलघट फूट गया

-डॉ. भारतेन्दु मिश्र
१८ जून २०१२

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