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मन हरसिंगार

 

तन उपवन
मन हरसिंगार

सरगम छेड़े पल-छिन
जलतरंग बाँह में
ऋतु ला बिछाए सब
रंग इसी छाँह में
करवट लिए मचला रहे
सिसके हँसे पीड़ा सहे
इस बाग़-वन
उस झील पार
हरसिंगार !

जुगनुओं की ज्योति पर
परीकथा लिखे
चरणामृत प्यास की
मरीचिका चखे
दौड़े थमे सँभले कभी
बिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने
सपनों के हार
हरसिंगार !

-अश्विनी कुमार विष्णु
१८ जून २०१२

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