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हरसिंगार फूल से झरें

 

सिंदूरी सपने
पल-छिन
हरसिंगार फूल से झरें

झाँक गयी वातायन से
मंद-मंद बहती पुरवा
चुपके-चुपके जाने कब
खोल गयी पृष्ठ अनछुआ
बेटी की ओर ताकती
अम्मा का माँगना दुआ

होनी-अनहोनी
संभ्रम
अंतस में हूक सी भरें


जाड़े की बरखा में भी
छप्पर का टप-टप संगीत
श्रमिकों के चूल्हों पर ही
बढ़ती महँगाई की प्रीत
सड़कों से पगडंडी तक
गुमसुम हैं, रोटी के गीत
जीवन भर
आपाधापी
झरबेरी बेर सी फरें

- अनिल वर्मा
१८ जून २०१२

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