हरसिंगार झर झर झरे, गमकी
चम्पक गन्ध
कौन अधर पर धर गया, मौलसिरी के छन्द
ओंठों पर शतदल खिले, गालों
खिले गुलाब
हरसिंगार से झर रहे, अंग अंग अनुभाव
हरित मखमली दूब पर, किरन
मोतिया जाल
हरसिंगार की बाँह में, है चंपा की डाल
बोल अधर से झर रहे, जैसे
हरसिंगार
स्वर में गुंजित बाँसुरी, झंकृत-स्वरित सितार
आँगन में क्या झर गयी
हरसिंगार की डाल
मौसम इतराने लगा, रजकण हुए निहाल
ऋतुवंती मधुकामिनी, भर
जूड़े में फूल
हरसिंगार से लिपटकर, गयी बाँह में झूल
कल्पवृक्ष का अनुज है,
नंदनवन शृंगार
देव पुष्प के रूप में, पावन हरसिंगार
किरन कुनकुनी छू झरे,
श्वेत केशरी फूल
सोना चाँदी हो गई है, मधुवन की धूल
झरी चाँदनी रात भर महके
हरसिंगार
नयन आँगुरी छू गई, बजते रहे सितार
मेंहदी रची हथेलियाँ जावक
चर्चित पाँव
अधर सुधा-रस मुरलिका, हरसिंगार की छाँव
-यतीन्द्रनाथ राही
१८ जून २०१२ |