अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

हरसिंगार (पाँच क्षणिकाएँ)

 


श्वेत केसरिया कोमल सुन्दर
हो तुम सौम्य प्रतीक
नम्र भाव को
देख कर
भक्त हुए नत शीश
 


तन्मय होकर चुन रही
चेहरे पर मुस्कान
शिव की
करूँ आराधना
कर में हरसिंगार

-कुसुम ठाकुर

रात भर चमक कर
बुझ जाते हैं जुगनू
ज़मीन पर बिखर जाती है
हरसिंगार की ख़ुशबू
हर सुबह।

-राजेन्द्र कांडपाल



पारिजात
तुम्हीं तो हो मेरे सहजात
सौंप कर अँधेरे को खुशबू अपनी
बिखर जाना ही है
नियति अपनी

-उर्मिला शुक्ला



दुग्ध -उज्जवल
शेफालिका
कोमल केसरिया अंग
शशि किरण में बिखरा सौन्दर्य
देखूँ मैं अपलक

-शशि पुरवार


१८ जून २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter