फूलों से हो दोस्ती, कुदरत
से हो प्यार।
एक पात्र मिट्टी भरें, रोपें हरसिंगार।
रोपें हरसिंगार, सींचिए नित्य सलिल से,
महकाएँ घर द्वार, मिले खुशबू हर पल से।
करें प्रकृति को मुक्त, प्रदूषित कटु शूलों से,
कुदरत से हो प्यार, दोस्ती हो फूलों से।
नाम तुम्हारे हैं कई, प्यारे हरसिंगार।
बगिया में सबसे अलग, तेरी महक अपार।
तेरी महक अपार, निराली रूप माधुरी,
केसरिया आधार, सजी है श्वेत पाँखुरी।
झरते सारी रात, निरखते चाँद सितारे,
प्यारे हरसिंगार, कई हैं नाम तुम्हारे।
लाई हूँ मैं गाँव से, साथ तुम्हारी पौध।
जहाँ रहूँगी रोपकर, काटूँगी अवरोध।
काटूँगी अवरोध, तुझे सींचूँगी मन से।
पारिजात तुम जुड़े, रहोगे इस जीवन से।
कभी न पाई भूल, शहर मैं जब से आई,
साथ तुम्हारी पौध, गाँव से अब हूँ लाई।
तुझे ढूँढने चल पड़ी, गली, सड़क, बाजार।
किस जहान में खो गए, प्यारे हरसिंगार।
प्यारे हरसिंगार, रात में देखा सपना,
तेरे फूलों संग, सजा था मेरा अंगना।
उतरा था आकाश, डालियों संग झूमने,
सपना टूटा पुनः, चल पड़ी तुझे ढूँढने।
-कल्पना रामानी
१८ जून २०१२ |