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याद तेरी गुलमुहर के फूल
वह विजनगंधी उदासी
अब गयी है भूल
गुलमुहर के फूल!
पास-पास रहे, बहुत उदास रहे
अँगना मेरे बनते आकाश रहे
धीरज की गाँठ बँधी, प्राणों के कूल
गुलमुहर के फूल!
धूपछाँही झीलों पर लेट गयी शाम
सिहरन में गूँजा फिर एक वही नाम
बासी ना होंगे ये, सपनों के शूल
गुलमुहर के फूल!
झूल गये शाखों पर आदान तम के
फिसल गये ओठों पर अनगाये थम के
आँखें लूँ मूँद उड़ी सुधियों की धूल
गुलमुहर के फूल !- शांति सुमन
५ अप्रैल २०१८
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