गुलमोहर तुम मन भाये
चाहे जैसा भी हो मौसम
मुझे मिले तुम इठलाते
रोज देखता हूँ मैं तुमको
कभी नही तुम इतराते
लाल रतन-धन भरे हृदय में
बलखाते से लगते हो
हरियाली में रक्तपुष्प की
मुकुट पहन तुम सजते हो
यादों में हरदम आये
छाँव तले तेरे गुलमोहर
मन रोमांचित है होता
हरदम यही सोचता हूँ मैं
एक वृक्ष घर पर होता
सीना ताने आसमान से
व्यस्त सदा रहते बातों में
भीनी गंध गुजरती रहती
और चहकती है रातों में
संग पवन तुम लहराये
आशीषों की रिमझिम तुम
बरसात सदा ही करते हो
मंगलमय यात्रा हो सबकी
भाव यही तुम धरते हो
रूप-रंग-रस-गंध सहित
हरदम रहे तुम्हारी शान
गुलमोहर सच कहता हूँ
भरते नवगीतों में प्राण
सपनों में भी मुस्काये
- श्रीधर आचार्य शील
२८ अप्रैल २०१८
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