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विषम समय में

 
विषम समय में गुलमोहर का
खिल-खिल कर हँसना भाया

लाल, हरे में बाँट बो रहे,
जहाँ हृदय में शूल
जहाँ गए हैं मानव, मानवता
को जैसे भूल
हरियाली के बीच वहीं पर
लाल रंग खिलना भाया

आधारों से विलग हो रहा
जहाँ नित्य संबंध
जहाँ हितों से जोड़ रहा है
हर कोई अनुबंध
वहीं धरा से मिलने को यह
झर-झर कर बिछना भाया

जहाँ सभी ऊँचे होते ही
लेते हाथ समेट
जहाँ प्रेम, सदभाव, दया को
देखा मटियामेट
वहीं छाँव के लिए धूप को
निज तन पर सहना भाया

- राहुल शिवाय
१६ अप्रैल २०१८

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