खिड़की के नीचे से प्यार
गुनगुनाता है
गुच्छा गुलमोहर का हाथ यों हिलाता है
अभी नही अभी नहीं
कल आएँगे गाँव तुम्हारे।
मरमरी उँगलियों में मूँगिया हथेली
चितवन की चौपड़ पर प्यार की पहेली
रुको नहीं रुको नहीं
चित आएँगे
दाँव तुम्हारे
लेती मद्धम हिंडोल सपनों से भरी नाव
नीम तलक जा पहुँचा महुए का एक गाँव
यहाँ नहीं यहाँ नहीं
कहीं और देखे थे
पाँव तुम्हारे
मन में लहराते हैं रंगे रेशमी रूमाल
वृक्षों पर आवारा कोयल गाती धमाल
कहाँ गई कहाँ गई
चौबारे बसती थी
छाँव तुम्हारे
वक्त के सिरहाने यों एक बात उग आई
सुबह-सुबह लिखवाई पाती में पठवाई
आज नहीं आज नहीं
कल आएगी
नाम तुम्हारे -
पूर्णिमा वर्मन
१६ जून २००६ |