प्रिय तुम्हारी पतियाँ पढ़ते
कितने रंग खिले चेहरे पर
गति साँसों की बहकी ऐसे
हम ही गुलमोहर हो बैठे
प्रेम का अमृतमय का प्याला
बेबस बेकल मन मतवाला
लंबे युगों से पल-छिन बीते
मेले जंगल रीते-रीते
हिये बसी पीरा क्या कहते
हम ही गुलमोहर हो बैठे
धूप लगन की भली-भली सी
छूने क्षितिज को झूम चली थी
छाँव घनेरी सुरमे वाली
थोड़ी ही थी नभ में लाली
पाँव की पायल छनके बहके
हम ही गुलमोहर हो बैठे
प्रीत की ज्वाला दीपक बनकर
रात उनींदी काटे जल-जल
याद जगें ज्यों कड़ियाँ लड़ियाँ
रस्ता देखें मीलों घड़ियाँ
लाल हुई सुबह सब सहते
हम ही गुलमोहर हो बैठे
आकर्षण चंदा सागर सा
साहिल से जैसे लहरों का
घुलना मिलना साँझ सवेरे
सोने ताँबे रंग घनेरे
दर्पण की आँखों में रहते
हम ही गुलमोहर हो बैठे
- नीलम जैन
१६ जून २००६ |