हंगामे भूलकर नगर के
फूले हैं फूल गुलमुहर के
हवा रंग घोल रही धूप में
मूँगे के दिये जला सूप में
कई सहज संवेदन जी उठे
अटक गयीं आँखें जो रूप में
चरण चरण थम गए डगर के
फूले हैं फूल गुलमुहर के
पुष्पवती शाखों को भींचता
एक पल समर्पण का सीझता
बोझिल चर्चाओं की भीड़ से
जादुई इशारों से खींचता
राग फिर जगे नई उमर के
फूले हैं फूल गुलमुहर के - नीलम श्रीवास्तव
१० अप्रैल २०१८ |