चिलचिलाती हुई धूप में
सज सँवर जोगिया रूप में
गीत गाने लगा गुलमुहर
मन लुभाने लगा गुलमुहर
अंगवस्त्रम घटक रेशमी
देह पर तोतई अँगरखा
श्वेत चंदन तिलक भाल पर
वक्ष पर हार है नौलखा
लाल मणि की सजी पंक्तियाँ
जल उठीं सैकड़ों बत्तियाँ
जगमगाने लगा गुलमुहर
मन लुभाने लगा गुलमुहर
झाड़फानूस से सज गया
दूधिया दर्पणों का महल
धूप की झील में खिल गए
रूप बदले हजारों कमल
भव्य है चित्र का कल्पना
बीच आकाश में अल्पना
है सजाने लगा गुलमुहर
मन लुभाने लगा गुलमुहर
यह समारोह सौंदर्य का
एक आभा घिरी मोहिनी
दाह के पल पिघलने लगे
बह चली एक मंदाकिनी
जिंदगी में कठिन ताप सह
दर्द में भी जियें किस तरह
ये सिखाने लगा गुलमुहर
मन लुभाने लगा गुलमोहर
- नीलम श्रीवास्तव
१० अप्रैल २०१८ |