गुलमुहर की टहनियों पर
रोज खिलते फूल
आवरण में धूप के
जब मुस्कुरातीं तरुण कलियाँ
चिन्तकों के चित्त में तब
रास करतीं ग्राम्य गलियाँ
साँझ,केसर-ओढ़नी ले
जा नहाती कूल
टाँकता परछाइयों में
गुलमुहर जब फूल अपने
क्लान्त मुख पर भी लुटाती
लालिमा तब सरस सपने
केरियों को देख सहमें
कीकरी के शूल
छन्दमय अनुभूति देता
दृष्टि लेता बाँध सबकी
डाकिया जैसा विचरता
चिट्ठियाँ देता प्रकृति की
नाचती अनुराग में
मकरन्द के संग धूल
- कल्पना मनोरमा
२८ अप्रैल २०१८
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