क्षणिक ही भूले, मगर भूले
गुलमोहर के फूल
फिर फूले
कठिन धरती पर हुआ है पैर रखना
बहुत महँगा हुआ जीवन स्वाद चखना
किंतु मृदु झोंके विचारों के
हृदय झूले
गुलमोहर के फूल
फिर फूले
स्नेह की सरिता किनारे छोड़ बैठी
नाव वाला मधुर नाता तोड़ बैठी
चाहती है कोई फिर भी
देह छूले
गुलमोहर के फूल
फिर फूले
- पं. गिरिमोहन गुरु
१६ जून २००६ |