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एक कथा कहनी है
 

देवदार वंशज है
एक कथा कहनी है
सुननी, सुनानी है।

रीत रहे बार बार काल-खंड
एक प्रलय-काल सतत ठहरा है
ढीठ बड़ा गूँगा है बहरा है

महामत्स्य सबके ही गायब हैं
दूर तलक पानी ही पानी है

शीत साध हम यहाँ विराज रहे
बर्फ लदे, ऊष्म मगर रहते हैं
सृष्टि कथा अहो रात्रि कहते हैं

देख रहे आज भी युधिष्ठिर के
स्वर्ग-सफर की कथा सयानी है

चीड़-भोज अपने ही कुल के हैं
मंत्र और आग-धर्म वाहक हैं
साम गान दावानल गायक हैं

सृष्टि-प्रलय इन्हें रहे मंचन सा
याद इन्हें हर कथा कहानी है

पता हमें मनु का वह शिला-छाँह
बैठ किसी स्वप्न का पिरोना सा
चिंता की रेख का पिरोना सा

खोज किसी इड़ा किसी श्रद्धा को
दोहराता फिर कथा पुरानी है

- वेद शर्मा
 
१५ मई २०
१६

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