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देवदारों सा सहो
 

पर्वतों सी पीर हो यदि
देवदारों सा सहो।

मत नदी सा भागना
गिरना नहीं नत हो कभी
साध लेना पर्वतों की
सख्तियों को नर्म होकर।
चेतना का सुर न हो
बेसुर न लय टूटे कभी
वर्जितों की हलचलों पर
चौकसी रखना निरंतर।

बढ़ समान्तर शिखर तक हर
दाह में हँस कर दहो

है कहाँ आसान टिकना
फिसलनों के देश में
योगियों सी वृत्तियाँ
रखनी पड़ेंगी आचरण को
ठहरने पायें न हिमकण
निराशाओं के कभी
शंकु होना ही पडेगा
शर्त बिन अंतःकरण को

मुश्किलों के बीच में
आसानियाँ बन कर रहो

‪-‎ सीमा‬ अग्रवाल 
 
१५ मई २०
१६

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