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अंतर्मन का चौकस प्रहरी
 

मन के विस्तृत घन कानन में
इच्छाओं के बहु आनन में
अंतर्मन का चौकस प्रहरी
देवदारु में खड़ा मिलेगा।

जूही चंदन भरा बगीचा
बिछे हुए हैं भाव गलीचा
मृदुल गूँज में स्वप्न भ्रमर भी
देवदारु में अड़ा मिलेगा।

चूम के गगन झूमता मगन
तनों की रगड़ दे रही अगन
पात नुकीले विधान शंकुल
देवदारु में बड़ा मिलेगा

तराइयों की हरी जागीर
तुंग श्रृंग सम बना प्राचीर
सजल नयन का प्रेम चित्र
देवदारु में गड़ा मिलेगा

स्वर्ण काष्ठ में तेल सुगंधित
हों पतझर में पत्ते ही बंधित
संत सरीखा देवदूत ही
देवदारु में पड़ा मिलेगा।

- ऋता शेखर ‘मधु’
 
१५ मई २०
१६

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