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खुद दहक रहे हैं
 

देवदारु
खुद दहक रहे हैं
माँग रहे हैं पानी

देवभूमि पर संकट के
ऐसे बादल मँडराए
उनकी लगी बुझाने उड़ -उड़
उड़न खटोले आए

दूर बैठ
टी वी पर देखे
हर्षित है रजधानी

चिरई के बच्चों की बोलो
किसको फ़िक्र पड़ी है
रहे सलामत अपना कुनबा
उसकी फौज खड़ी है

लुका-छुपी
का खेल देख-
कर गिद्धों को हैरानी

बकरे की माँ कहो संत जी
कब तक खैर मनाए
बहरूपिया हुआ सब मंज़र
लोकतंत्र मुस्काए

वहाँ कुम्भ
में फूट रही श्री
मुख से अमृत बानी

- डॉ रामेश्वर प्रसाद सारस्वत  
 
१५ मई २०
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