अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कट जाएँगे सारे देवदार
 

जंगल से आया है समाचार
कट जाएँगे सारे देवदार

देवदार हो गए पुराने हैं
पेड़ नहीं, भुतहे तहखाने हैं
उन बूढ़ी आँखों को क्या पता
पापलरों के नए जमाने हैं

रह लें वे तली बन शिकारे की
अश्वत्थामाओं में हों शुमार

घूम-घूम कह गए गँडासे हैं
ठीक नहीं ज़्यादा हिलना-डुलना
बाँसवनों ने तो दम साध लिया
बन्द हुआ बरगद का मुँह खुलना

मरी हुई सीप थमाकर लहरें
मोती ले गई सिन्धु से बुहार

नाप रहा पेड़ों को आरा-घर
कुर्सियाँ निकलती हैं इतराकर
बिकने को जाएँगी पेरिस तक
नाचेंगी विश्वसुन्दरी बनकर

कौन सुने, ओसों के भार से
दबी हरी दूबों का सीत्कार

- बुद्धिनाथ मिश्रा  
 
१५ मई २०
१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter