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देवदारु के पेड़ घने हैं
 

देवदार के पेड़ घने हैं
हरे भरे वन के
गहने हैं

नहीं किसी पर हैं वो निर्भर
सर्दी गर्मी सब सहते हैं
भेद-भाव कुछ नहीं झलकता
सभी साथ मिलकर रहते हैं

जैसे सारा जंगल उनका
इक दूजे के लिए
बने हैं

हरियाली की चादर बनकर
देते सब जीवों को छाया
बादल चूमे हवा दुलारे
है सूरज का उन पर साया

स्वस्थ हमेशा दिखते हमको
सीधे लम्बे सुघड़
तने हैं

चाह गगन से है मिलने की
चले जा रहे बढ़ते आगे
जैसे कोई बड़ा खिलाड़ी
दौड़ जीतने सरपट भागे

विजय मुकुट माथे पर जैसे
बचपन से ही वो
पहने हैं

लोग आजकल उन्हें काटने
चला रहे लोहे का आरा
रोज चीखता घायल जंगल
उघड़ रहा तन उसका सारा

देवदार के पेड़ बचाओ
नहीं पराये वो
अपने हैं

- बसंत कुमार शर्मा  
 
१५ मई २०
१६

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