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शंख के स्वर शरबती हुए
 

देवदार ने
उठकर खोले
बँधी पवन के पंख
शंख के स्वर शरबती हुए

उजले सपनों की पहली
जलधारा छू जागे
गीत उड़े त्रिभुवन में
सारी चिड़ियों के आगे

मधुमासी चाहत
की खुशबू पीकर यती हुए

कँगना कँगना नंदनवन
बिछुओं में स्वर्ग उगे
चैत्र-यामिनी के जादू में
लगे न आँख लगे

अंग रंगों की
कस्तूरी के ऐसे लती हुए

धीरज चरमर और
सपनों के कुंदे डोल गए
चालीस चोर अलीबाबा के
बक्से खोल गए

अलसाए नाकारा
शोहदे यों मेहनती हुए

- अश्विनी कुमार विष्णु  
 
१५ मई २०
१६

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