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यह देवदार |
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कुदरत
का अनुपम उपहार
यह देवदार
झुरमुटों की ओट से
रवि झाँकता, होता विहान
पत्र पूरित डाल बिनतीं
छाँव का अद्भुत वितान
ऋषि सरीखा, खड़ा तनकर
ऊर्ध्वगामी, निर्विकार
यह देवदार
प्रकृति का हर रोष पहले
झेलता अपने बदन पर
बाँध रखता गिरि धरा को
अभय देता है निरंतर
गिरि सभ्यता का रहा यह
जीने का आधार
यह देवदार
शिव लीला का रहा साक्षी
कालिदास का श्लोक
गिरि के सोपानों पर इसका
हरा भरा हो लोक
इसकी रक्षा का अब हमको
लेना होगा भार
यह देवदार
- अनुराग तिवारी
१५ मई २०१६ |
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