अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

यह देवदार
 

कुदरत का अनुपम उपहार
यह देवदार

झुरमुटों की ओट से
रवि झाँकता, होता विहान
पत्र पूरित डाल बिनतीं
छाँव का अद्भुत वितान

ऋषि सरीखा, खड़ा तनकर
ऊर्ध्वगामी, निर्विकार
यह देवदार

प्रकृति का हर रोष पहले
झेलता अपने बदन पर
बाँध रखता गिरि धरा को
अभय देता है निरंतर

गिरि सभ्यता का रहा यह
जीने का आधार
यह देवदार

शिव लीला का रहा साक्षी
कालिदास का श्लोक
गिरि के सोपानों पर इसका
हरा भरा हो लोक

इसकी रक्षा का अब हमको
लेना होगा भार
यह देवदार

- अनुराग तिवारी  
 
१५ मई २०
१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter