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कैसे वह मुस्काएगा अब
 

देवदारु के ही जैसी हैं
देवदारु की बातें

किसी रहस्यलोक से आये
हैं ये तरुवर जैसे।
हैं विशाल बाहों पर थामे
मस्तक भूधर जैसे

इसकी शाखों पर फलती हैं
क्रिसमस की सौगातें

बर्फ पड़े तो हो जाते ध्यानस्थ
तपस्वी जैसे
वर्षा या आतप में भी गम्भीर
मनस्वी जैसे

इनकी छाया में सोती हैं
कितनी भीगी रातें

कालजयी लगते हैं ये, दुर्दम्य
महाभट जैसे।
ये इतिहास वृक्ष, धरती की गूढ़
लिखावट जैसे

सहते हैं सधैर्य मौसम की
और मनुज की घातें

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'
 
१५ मई २०
१६

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