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देवदार है प्रहरी सा
 

सजग वीर सा तना खड़ा जो
देवदार है प्रहरी सा
सह कर जग के धूल थपेड़े
चमके धूप सुनहरी सा

छेड़ें उसको मस्त हवाएँ
बादल अठखेली कर जाएँ
पर वह बिलकुल ना घबराए
निष्ठा से कर्तव्य निभाये
ताल ठोंक कर दिये चुनौती
बिगुल बजा रण भेरी सा
सजग वीर सा तना खड़ा जो
देवदार है प्रहरी सा।

मन उन्नत अम्बर को चूमे
जमें पाँव धरती अंतस में
जब तक वो बाँधे चट्टानें
खड़ा है गिरिवर सीना ताने
प्राण है जब तक करेगा रक्षा
प्रण है अटल तपस्वी सा
सजग वीर सा तना खड़ा जो
देवदार है प्रहरी सा।

भोर रश्मियाँ निस दिन आतीं
चहुँ दिश में आभा फैलाती
रात अंजोरी बहुत लुभाती
पूर्ण समर्पण कर भरमाती
निश्चल अविचल संत भाव से
खड़ा है वो सामर्थी सा
सजग वीर सा तना खड़ा जो
देवदार है प्रहरी सा।

- अलका प्रमोद  
 
१५ मई २०
१६

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