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देवदारु को अहम है
 

देवदारु को अहम है
वृक्ष मैं ऊँचा बड़ा
पर मनुज तैयार लेकर
काटने आरा
खड़ा

ये नियति है हर अहम की
एक दिन मिट जायेगा
देवदारु भी कभी चुप-
चाप से कट जायेगा

भाग्य से कैसे लड़ाई
आज तक कोई
लड़ा

भूपति हैं लाख आये
दी चुनौती काल को
पर बदल पाये नहीं वे
द्रुत समय की चाल को

हर स्वयंभू इस धरा पर
हार कर औंधा
पड़ा

भोज्य जिसमें है उसे जग
सत्य, बिल्कुल खायेगा
त्याज्य को नव रूप दे
उपयोग में ले आएगा

जो है अति निकृष्ट वो
बेकार गल गल के
सड़ा

- डॉ अखिल बंसल  
 
१५ मई २०
१६

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