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हरी भरी मीनार
 

देवदार
एक हरी भरी मीनार
जिसके तले
प्रेम की आँच में
पिघलने लगते हैं
बरसों से सुन्न पड़े जज़्बात
जिसकी छाँव में
अनायास बढ़ने लगती हैं
दो हथेलियों के बीच
अतिरिक्त गरमाहट।

देवदार
जिसकी लहरदार कतार
डाल देती है
रूमानियत का गर्म शाल
बर्फ पर चलते
दो जोड़ी कन्धों पर
यों तो
बर्फ से ढका पर्वत
खुद ही एक महल है
जहाँ नाचने लगती हैं
अनुभूतियाँ
हवा के स्पर्श से।

मगर उन पर उगे
देवदार
मानो
संवेदनाओं के समीकरण में
एक उत्प्रेरक पदार्थ।

सच कहूँ तो
देवदार
मौन के बिछौने पर
बर्फ की चादर ओढ़ कर सोयी
धरती का
एक मात्र श्रृंगार।

- संध्या सिंह   
 
१५ मई २०
१६

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