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देवदार |
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सुनती
हूँ पर्वतों पर, रहते हैं देवदार।
गोदी में इनकी प्यार से, पलते हैं देवदार।
गुंबज हरे गुलाबी, मलखान, शंकु रूप
पगडंडियों के सँग-सँग चलते हैं देवदार।
जीना है सिर उठाकर, सीखा ये जन्म से
नज़रें बुलंदियों पर रखते हैं देवदार।
इंसान की दिमागी फितरत को देखिये
विचरण वनों में भी अब, करते हैं देवदार।
रहते जहाँ बढ़ाते, शोभा ये चौगुनी
कुदरत में रंग नूतन, भरते हैं देवदार।
बेजाँ इमारतों के, सुख साधनों में ढल
बन-ठन के सँग हमारे, रहते हैं देवदार।
देकर हवाएँ शोधित, सेवक ये युग-युगों
पर्यावरण की पीड़ा, हरते हैं देवदार।
इंसान से ये चाहें बस प्यार ‘कल्पना’
जिसपर निसार जीवन, करते हैं देवदार।
- कल्पना रामानी
१५ मई २०१६ |
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