अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

खिला फिर बेला
 

अम्बर पर तारों का मेला
आधी रात खिला फिर बेला

सुंदर सजकर आयी रजनी
कुछ सहमी सकुचायी रजनी
घूँघट में शरमायी रजनी
चाँद खड़ा क्यों दूर अकेला

बीती रात सुबह अब आती
कली कली भी गान सुनाती
तितली अपने पर फैलाती
उपवन खिल जाता अलबेला

सपन सलोने नयन बसाये
सजनी मन ही मन मुस्काये
मधुर वचन से अधर पगाये
थाम लिया जीवन का रेला

- वैशाली
१५ जून २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter