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मन प्रांगण में बेला
महका |
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मन, प्रांगण में बेला महका
याद तुम्हारी आई
इस दिल के कोने में बैठी
प्रीति, हँसी-मुस्काई।
नोक झोंक में बीती रतियाँ
गुनती रहीं तराना
दो हंसो का जोड़ा बैठा
मौसम लगे सुहाना
रात चाँदनी, उतरी जल में
कुछ सिमटी, सकुचाई।
शीतल मंद पवन हौले से
बेला को सहलाए
पाँख पाँख कस्तूरी महकी
साँसों में घुल जाए।
कली कली सपनों की बेकल
भरने लगी लुनाई
निस-दिन झरते, पुष्प धरा पर
चुन कर उन्हें उठाऊँ
रिश्तों के ये अनगढ़ मोती
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ
आँख शबनमी रचे अल्पना
दुलहिन सी शरमाई।
- शशि पुरवार
१५ जून २०१५ |
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