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खिल उठा है मोगरा
 

मत काटो
बेला को भैया
अब ही
दिन आये खिलने के

कच्चा गिरा
बना जब पक्का
पौधा एक लगाया
बड़े जतन से
माली बन
पापा ने है दुलराया
भूले नहीं
भुलाते हैं पल
बाबा के इससे मिलने के

सुबह सुबह
गौरैया आकर
इस पर गाना गाती
भंवरों की गुनगुन
तितली की
लुकछुप खूब लुभाती
खुशबू ढूँढ
बहाने लेती
पवन झकोरों से हिलने के

अनुपम छटा बखेरे
सारे घर में
जगर मगर है
महक उठे
कोना कोना
क्या बाहर क्या अंदर है
हँस कर
बतियायेगी सब से
अधर न अब इसके सिलने के

मत काटो
बेला को भैया
अब ही
दिन आये खिलने के

- डॉ रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१५ जून २०१५

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