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जब बेला भी गंध न दे |
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जब बेला
भी गन्ध न दे तो
किससे मन की बात कहें ?
बेला, जुही, गुलाब, मोंगरा,
सबके अपने रंग अलग हैं,
बाजारों की तितलीपंखी
मुस्कानों के ढंग अलग हैं ।
बेला के
बदले अब कैसे
नागफनी के साथ रहें ?
जब बेला के गजरे भी हैं
लिपट-लिपट कर प्यार जताते,
रोज अधर से संधिपत्र लिख
अहसासों की तपन बढ़ाते,
बातूनी
आधुनिक मोंगरा का
कब तक उपहास सहें ?
अब बेला के आलिंगन में
विश्वासों की गन्ध कहां ?
अब बेला की पंखुडियों से
वह सच्चा सम्बन्ध कहां ?
कैसे बेला
गीत भुलाकर
हम डिस्को के साथ बहें ?
जब बेला भी
गन्ध न दे तो
किससे मन की बात कहें ?
- राधेश्याम बन्धु
१५ जून २०१५ |
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