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सुंदर बेला फूल |
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जीवन भर हम
रहे रोपते
केवल वृक्ष बबूल,
प्रत्युत्तर में
तो भी चाहें
सुंदर बेला फूल।
पौ फटने से
रात ढले तक
निजता ही निजता,
सिर्फ स्वचिंतन
में ही जीवन
जाता है छिजता ;
अपने से
बाहर की दुनिया
जाते हैं हम भूल।
सदा अहं को
पाला-पोसा
ना छोड़ा अभिमान,
अपनी सुविधा
के आगे, ना रहा
और कुछ ध्यान ;
प्रतिफल में
एकाकीपन
यूँ चुभता जैसे शूल।
गहन ईर्ष्या
की ज्वाला से
जब-जब धधके मन,
जलें पड़ोसी बाद
सुलगता
पहले निज कण-कण ;
फिर भी
समझ नहीं पाते हम
अपने दुःख का मूल।
- ओमप्रकाश तिवारी
१५ जून २०१५ |
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